The Train... beings death 12
सभी एक दूसरे की शक्लें ही देख रहे थे कि चारो तरफ लाल धुआं इकठ्ठा होना शुरू हो गया। कमरे में गुलाबी रोशनी फैलनी शुरू हो चुकी थी.. एक विचित्र आवाज पर सबका ध्यान गया....
चिट..चूं... चिट... चूं... चिटाक...!!!
धीरे-धीरे धुएँ ने आकार लेना शुरू कर दिया... धीरे-धीरे वह एक विचित्र से पारदर्शी जीव में परिवर्तित हो रहा था। एक बड़ा सा विशालकाय जीव.. वहां बैठे सभी पर नजर जाते ही उस को आभास हुआ कि वहां कोई और भी था.. तब उस जीव ने आकार लेना बंद कर दिया।
पर वह अभी भी बेड पर लेटी उस बच्ची की तरफ आगे बढ़ रहा था। उसके पास पहुंचकर वह धुंआ एक विशालकाय गोले में परिवर्तित हो गया और उस लड़की के चारों तरफ आकार लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वह लड़की बेड से ऊपर उठने लगी और लगभग बेड से तीन फुट उपर जाकर रुक गई और धीरे-धीरे हवा में वामावर्त गोल घूमने लगी। उस लड़की ने जैसे ही हवा में गोल घूमना शुरू किया वैसे ही उसके शरीर में परिवर्तन होने शुरू हो गए।
बच्ची का शरीर धीरे धीरे बैंगनी रंग में परिवर्तित होता जा रहा था। उसके अंदर मानो कोई चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो रहा था.. जिससे आसपास रखे मेडिकल इक्विपमेंट्स भी प्रभावित हो रहे थे। उनकी रीडिंग उपर नीचे बहुत ही तेजी से फ्ल्कचुएट हो रही थी।
वो सभी आंखें फाड़े उस पूर्ण दृश्य को देख रहे थे। किसी के भी अंदर सांस लेने या हिलने तक की सामर्थ्य नहीं थी। वो लोग सांसें रोके उस दृश्य को देख रहे थे और उस जीव के आगे कुछ करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। धीरे-धीरे उस लड़की के अंदर से प्रवाहित होने वाला चुंबकीय प्रभाव बढ़ता प्रतीत हो रहा था और उस लड़की के शरीर में तेजी से परिवर्तन हो रहे थे। शरीर हल्का बैंगनी हो रहा था.. उसका पेट धीरे धीरे बड़ा होता जा रहा था। मेडिकल इक्विपमेंट्स में पल्स रेट धीरे धीरे शुरू होकर मैक्सिमम स्पीड तक पहुंच गई थी। ऑक्सीजन लेवल डाउन जा रहा था.. हार्टबीट नार्मल से तेज चलती महसूस हो रही थी और सबसे बड़ी बात.. अब तक वह लड़की जो बेहोश पड़ी हुई थी.. उसके शरीर में धीरे धीरे हलचल होना शुरू हो गया था।
अचानक से नीरज की नजर उस लड़की के बेड के पीछे लगी डिजिटल क्लॉक पर गई... घड़ी में दिन के 3:00 बजे का समय दिखाई दे रहा था और तारीख 8 दिन बाद की तारीख नजर आ रही थी। नीरज ने हड़बड़ा कर अपने हाथ में बंधी उस डिजिटल घड़ी को देखा.. उसमें भी 25 जुलाई की तारीख दिखा रही थी और जब कि कुछ देर पहले ही.. वो लोग जब दिन में लड़की को चैक करने के लिए अंदर आए थे.. तब 17 जुलाई शाम के 5:00 बज रहे थे। और अब थोड़ी ही देर के बाद 25 जुलाई दोपहर के 3:00 बज रहे थे। समय में इतने तीव्र परिवर्तन की सपने में भी कोई साधारण मानव नहीं सोच सकता.. और यहां तो समय साक्षात् इतनी तेजी से भागता हुआ दिखाई दे रहा था। जिसे देखकर किसी के भी होश ठिकाने आ सकते है.. और यही हुआ था नीरज के साथ..! समय को सोचने की गति से भी तेजी से भागता देखकर नीरज के दिल ने धड़कना भूल कर बस समय की गति को ही समझना शुरू किया।
नीरज बहुत ही ज्यादा घबरा गया था और इसी घबराहट के कारण धीरे-धीरे हकलाने लगा था। घबराहट के कारण उसने इंस्पेक्टर कदंब को हिलाया और उसका ध्यान घड़ी की तरफ खींचा। घड़ी पर नजर जाते ही इंस्पेक्टर कदंब के भी होश उड़ गए थे। उन्हें भी अच्छे से समझ आ रहा था कि नीरज उन्हें क्या दिखाना चाह रहा था।
उन दोनों को ऐसे दीवार की तरफ देखता पाकर.. रोहित और डॉ शीतल उन्हें प्रश्नवाचक नजरों से देख रहे थे। उन लोगों को नीरज और इंस्पेक्टर कदंब का वह व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। डॉ शीतल ने रोहित को इशारा किया उनसे पूछने का.. तो रोहित ने नीरज को इशारा कर उसे पूछा। इस समय भी नीरज कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था.. इशारे में ही रोहित ने नीरज से वहां क्या हो रहा था उस बारे में पूछा।
नीरज ने हड़बड़ा कर रोहित को घड़ी की तरफ देखने का इशारा किया। रोहित नासमझी से नीरज की तरफ ही देख रहा था। उसे नीरज का इशारा समझ नहीं आया था। कुछ देर तक रोहित ने इशारे से घड़ी की तरफ देखने के लिए कहा.. पर जब रोहित को इशारा समझ नहीं आया.. तो नीरज ने उसका चेहरा पकड़ कर उसकी गर्दन घड़ी की तरफ घुमा दी।
घड़ी की तरफ नजर जाते ही रोहित को भी एक जोरदार झटका लगा। उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि इस समय घड़ी के साथ ऐसा कुछ हो रहा होगा। वो लोग अभी घड़ी की तरफ देख ही रहे थे कि इतने में घड़ी में रात के 2:00 का समय और तारीख 30 जुलाई दिखनी शुरू हो गई। रोहित का दिल तेजी से धड़कने लगा उसे ऐसा लगा के दिल अभी कूदकर बाहर आ जाएगा।
वह लोग आंखें फाड़े हुए कभी घड़ी की तरफ तो कभी हवा में लटकती उस बच्ची की तरफ देख रहे थे। डॉ शीतल हैरान परेशान थी.. उन लोगों की शक्लें देख कर। क्या हो रहा था वह भी समझने का प्रयास ही कर रही थी? उनकी नजरों का पीछा करने पर डॉ शीतल का ध्यान उस डिजिटल क्लॉक पर पड़ा.. जोकि 30 जुलाई रात के 2:00 बजे का टाइम दिखा रही थी।
ऐसे टाइम का चेंज होना शीतल को और भी ज्यादा चिंता में डाल रहा था। शीतल का दिमाग उससे बग़ावत पर उतर आया था। समय के ऐसे भागने पर शीतल का दिमाग विश्वास नहीं कर पा रहा था और दिल बार बार उसे चेतावनी दे रहा था.. किसी बड़े आने वाले खतरे की..!!!
उन लोगों की इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो लोग उस कंडीशन में बैठे हुए कुछ करने की सोचें भी.. और सोचते भी कुछ करने के बारे में तो क्या ही कर सकते थे। ऐसे ही विवश बैठे-बैठे वह लोग कभी घड़ी को तो कभी उस लड़की को देख रहे थे.. जिसे उस पारदर्शी लाल रोशनी के घेरे ने घेरा हुआ था।
धीरे धीरे उस पारदर्शी लाल रोशनी की तीव्रता बढ़ती जा रही थी और साथ ही बढ़ता जा रहा था.. उस बच्ची के शरीर में होने वाला परिवर्तन..! बच्ची का शरीर गहरे बैंगनी रंग में ढलता जा रहा था और उसी तेजी से टाइम भी भाग रहा था।
लगभग 10 मिनट तक उन्होंने इस प्रक्रिया को देखा होगा.. पर घड़ी में 15 दिन आगे का डेट और टाइम दिख रहा था। वह लोग भौचक्के से इन सब को बस देख ही रहे थे।
अचानक झटके से दरवाजा खुला.. एक पल के लिए टाइम वहीं रुक गया। घड़ी 14 अगस्त दिन के 2:15 और 13 सेकंड पर रुक गई थी और लगभग 1 मिनट तक वही रुकी रही। दरवाजा आधा खुला रह गया था। शीतल, नीरज, कदंब और रोहित चारों बस उस परिवर्तन को नोटिस कर रहे थे। उन्हें अब उस रुके हुए समय को देखकर उतना अचंभा नहीं हो रहा था क्योंकि कुछ वक्त पहले समय को पंख लगे हुए भी देख चुके थे।
केवल उन लोगों की पलकें ही झपक रही थी। उस रुके हुए समय में वो लोग अपनी बॉडी को मूव नहीं कर पा रहे थे और बस केवल पलकें ही झपका पा रहे थे। धीरे-धीरे 1 मिनट बीता और सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य हो गया।
घड़ी वापस से 17 जुलाई 5 बचकर 10 मिनट की तरफ इशारा कर रही थी। दरवाजा खुलने के कारण जो शख्स भीतर आने वाला था.. उसने एंट्री की और घबरा कर सबको कहा, "सॉरी.. सॉरी.. सॉरी मैडम..!!! इमरजेंसी थी अगर यह मजबूरी ना होती तो मैं बिल्कुल भी आप लोगों को डिस्टर्ब करने के लिए यहां नहीं आती।"
वह हैरान परेशान थी घबराती हुई नर्स बार-बार सॉरी बोल रही थी। यह वही नर्स थी.. जिसे रोहित ने बाहर वेट करने के लिए और उन्हें डिस्टर्ब ना करने के लिए कहा था।
सभी लोगों ने उस नर्स को देखकर राहत की सांस ली। मानो मरने वाले को संजीवनी मिल गई हो.. एक गहरी साँस लेकर एक दूसरे को देखा जिनके चेहरे पर अब राहत के भाव दिख रहे थे मानो बोल रहे हो जान बची तो लाखों पाए।
सभी उस नर्स के लिए कृतज्ञ महसूस कर रहे थे और हो भी क्यों नहीं.. उसी की वजह से उनकी जान जो बची थी। वर्ना वो जीव पता नहीं उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता.?? बेचारी नर्स घबरा रही थी कि उसकी नौकरी पर बात ना आ जाए.. उसके इस तरह अंदर आने के कारण। उसे अब अपने घर चलाने की चिंता होने लगी थी।
दूसरी तरफ बाकी सब सोच रहे थे कि अच्छा हुआ के नर्स टाइम पर आ गई। थोड़ी देर तक सभी एक दूसरे को शांति से देख रहे थे।
लगभग पांच मिनट बाद डॉक्टर शीतल ने नर्स से पूछा, "सिस्टर क्या इमर्जेंसी थी.. के आपको ऐसे अंदर आना पड़ा..??" शीतल गौर से नर्स के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करते हुए पूछ रही थी।
सवाल सुनते ही नर्स के चेहरे से हवाइयां उड़ गई थी। उसे जवाब नहीं सूझ रहा था। कुछ देर तक चुप रहने पर सभी को अपनी ओर घूरता पाकर नर्स थोड़ी नर्वस हो गई थी। उसने थूक गटकते हुए एक बार फिर से सभी की तरफ देखा तो सभी की आँखों में उसके लिए सवाल ही थे। एक मिनट रुक कर नर्स ने एक गहरी साँस लेते हुए बोलना शुरू किया।
"डॉक्टर..!! आप मानो या ना मानो पर एक बात है जो मैंने आपको नहीं बताई थी..!!" नर्स बोल ही रही थी कि नीरज ने जल्दबाजी में पूछा, "क्या मतलब है तुम्हारा..?? और कौन सी बात तुमने हमें नहीं बताई..??"
नीरज के नर्स को ऐसे टोकते ही सभी ने नीरज को घूर कर देखा तो नीरज ने अपनी गर्दन झुका ली और एकदम चुप होकर बैठ गया।
कदंब ने नर्स की तरफ देखते हुए कहा, "आप बताइए सिस्टर..!! क्या कहना चाह रही थी आप??"
नर्स ने शीतल की तरफ देखते हुए अपनी गर्दन झुका ली और कहा, "मुझे पता है कि पाँच मिनट पहले इस कमरे में क्या हो रहा था..??"
सभी झटके से नर्स की तरफ मुड़ गए और एक साथ सबके मुँह से निकला, "कैसे..??"
"क्योंकि यही आपके आने के 5 मिनट पहले हुआ था और इसी लिए मैं उस समय घबराई हुई थी " नर्स ने सारा सस्पेंस खत्म करते हुए कहा।
सभी आंखे फाड़े नर्स को देख रहे थे.. और उन्होंने उस टाइम किसी से कुछ भी बात करना ठीक नहीं समझा पर अब अनियंत्रित सा सबकुछ हाथ से छूटता हुआ दिख रहा था।
डॉक्टर शीतल सोफ़े से उठी और धीरे-धीरे बेड पर लेटी लड़की के पास पहुंची.. और उसको एग्जामिन करने लगी। लड़की की बॉडी अब ठीक काम कर रही थी पर उसकी बॉडी में कुछ चेंजेज़ नजर आ रहे थे। उस लड़की के सिर पर एक विचित्र निशान बैंगनी रंग से चमक रहा था.. पेट थोड़ा उभरा हुआ नजर आ रहा था और तो और पेट में भी अजीब सी हलचल होती नजर आ रही थी.. जैसे कोई चीज इधर से उधर घूम रही हो।
ये सब देखकर शीतल के माथे पर बल पड़ गए थे। और शीतल को ऐसे देखकर बाकी सभी के माथे पर भी शिकन दिखने लगी थी। शीतल ने अल्ट्रासाउंड मशीन से उस लड़की के पेट की जाँच की तो उसे पेट में एक एडवांस्ड भ्रुण दिखाई दिया जो बहुत ही तेजी से बढ़ रहा था। उसकी मूवमेंट इतनी तेज थी कि मशीन भी उसकी पिक्चर्स लेने में फेल हो गई थी। पर इतना होने के बाद भी अभी भी वह इतना विकसित नहीं हुआ था कि जन्म ले सके।
शीतल ने बहुत ही बारीकी से एग्जामिन करने पर कुछ ऐसा पाया के उस टेंशन भरे माहौल में भी उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। सभी आश्चर्यपूर्वक शीतल की तरफ ही देख रहे थे.. तभी नीरज से नहीं रहा गया और उसने उतावला होकर डॉक्टर शीतल से पूछ ही लिया, "इस टेंशन के टाइम में ऐसा क्या मिल गया आपको के आप ऐसे मुस्करा रही हैं..??" नीरज के चेहरे पर क्रोध और व्यंग्य के भाव थे.. और वही व्यंग्य उसकी वाणी में भी झलक रहा था।
शीतल ने भी उसकी बात का बुरा नहीं मानते हुए.. सभी की तरफ मुस्कराते हुए देखा और उत्साहित होकर कहा, "एक गुड न्यूज है..!!"
सभी एकदम से चौंक पड़े। चौंकने के कारण ही नीरज का जरा सा संतुलन बिगड़ा और लगभग रोहित के ऊपर ही गिर ही पड़ा। रोहित एकदम उठ खड़ा हुआ और गुस्सा होते हुए नीरज पर भड़का, "इतनी भी क्या एक्साइटमेंट के आसपास का भी होश ना रहे। अगर कहीं और गिरते तो खोपड़ी खुल जाती.. और हमारे उपर गिरकर हमारी हड्डियां तोड़ने का विचार था क्या..??" रोहित के आवाज में गुस्सा था जो नीरज के डाक्टर शीतल से गलत लहजे में बात करने के कारण था।
रोहित के ऐसे बरताव से नीरज एकदम भौचक्का रह गया.. उसे कुछ भी जवाब नहीं सूझ रहा था। वो इधर उधर बगलें झांकने लगा था।
शीतल ने उसे आँखों ही आँखों में आश्वासन देते हुए कहा, "कोई बात नहीं रोहित.. इसमे इतना गुस्सा होने की कोई बात नहीं है। हो जाता है कभी-कभी.. शांत हो जाओ।"
शीतल के ऐसा बोलते ही रोहित की गर्दन शर्म से झुक गई थी। उसे अपने किए पर शर्मिंदगी थी.. उसने बिना गर्दन उठाए ही झुकी हुई नजरो से नीरज को सॉरी कहा।
"आई एम सो सॉरी.. नीरज..!!"रोहित ने कहा तो नीरज ने भी मुस्कुराकर,
"इट्स ओके..!!" कहकर बात वही खत्म कर दी।
सभी वापस शीतल की तरफ मुड़ गए.. उसके चेहरे पर एक मंद मुस्कान अभी भी थी.. और अब शीतल अपनी बात बताने के लिए बहुत ही ज्यादा उत्साहित नजर आ रही थी।
दूसरी ओर अब सच में रात हो चली थी.. अरविंद और अनन्या दोनों ही काफी थक चुके थे। चिंकी भी पूरे दिन भर उनके साथ मस्ती करते हुए काफी थक गई थी। थकान के कारण उनकी आंखे नींद से बोझिल होने लगी थी.. वो सभी अब सोना चाहते थे।
अनन्या और अरविंद ने चिंकी को गोद में उठाया और उसके कमरे में छोड़ने के लिए चले गए। चिंकी का कमरा साधारण ही दिख रहा था.. बहुत ज्यादा समान भी अभी वहां नहीं था। अधिकतर समान अभी तक पैक ही पड़ा था। चिंकी के ना मिलने के कारण अभी तक पैकिंग अनपैक नहीं की गई थी।
वैसे भी अब उन्होंने चिंकी के रूम का रेनॉवेशन करवाने के बारे में सोच लिया था.. जो जल्दी ही शुरू भी होने वाला था। कमरे के बीचो बीच एक बेड पड़ा हुआ था जिसपर मोटू पतलू वाली चादर बिछी हुई थी.. और पास ही पड़ा था चिंकी का चीकू.. जी उसका रेड टेडी बेयर..!! उसके बिना चिंकी को नींद नहीं आती थी। बेड पर अरविंद ने चिंकी को सुला दिया था.. लेटते ही चिंकी गहरी नींद में सो गई। चिंकी को इत्मीनान से सोता देख वो दोनों बहुत खुश हुए और चिंकी का माथा चूम कर अपने कमरे में सोने चले गए।
धीरे धीरे रात गहरी होती जा रही थी.. थोड़ी देर बाद ही दूर किसी घड़ी ने रात के एक बजने का इशारा किया। चिंकी जो अब तक मीठी नींद में सोई हुई थी.. उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएं खिंचने लगी थी। डर से वो पसीना पसीना हो गई थी.. और एकदम से चिंकी जोरदार चीख उठी...
"माँ....!!!"
क्रमशः...
Abhinav ji
05-Apr-2022 09:32 AM
Intresting parts
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Punam verma
26-Mar-2022 04:53 PM
Har part ek se badhkar ek hai
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Renu
26-Mar-2022 07:06 AM
बहुत ही बेहतरीन
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